- Over 50gw of solar installations in india are protected by socomec pv disconnect switches, driving sustainable growth
- Draft Karnataka Space Tech policy launched at Bengaluru Tech Summit
- एसर ने अहमदाबाद में अपने पहले मेगा स्टोर एसर प्लाज़ा की शुरूआत की
- Acer Opens Its First Mega Store, Acer Plaza, in Ahmedabad
- Few blockbusters in the last four or five years have been the worst films: Filmmaker R. Balki
फूलां पे वे निखार तो हमझो बसंत है
मालवी लोकगीतों की प्रस्तुती ने सबका मन मेाह लिया
इंदौर. श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति में साल की पहली मालवी जाजम बिछाई गई. इस बार राष्ट्रीय भावना के प्रेम से ओतप्रोत रचनाएं एवं बसंत के आगमन की खुशी से सराबोर मालवी लोकगीतों की प्रस्तुती दी गई.
पीले पीले सरसों के फूलों से सजी धरती, हरियाली चुनर ओढ़े खेतों में बिछी चादर, कोयल की कूक पपीहा की पीहू पीहू समूचा वातावरण मानों पुष्पों की सुगंध से महक उठा भौरों से गुंजायमान हो रहा हो. अंतर्मन को छूते हुऐ ऐेसे ही मनोहारी दृश्यों का चित्रण करते मालवी लोकगीतों को प्रस्तुत कियाा गया तो हर कोई मानों बसंत के रंग अबीर और गुलाल में रंग गया. मालवी लोकगीतों की प्रस्तुती ने सबका मन मेाह लिया.
कार्यक्रम की शुरूआत वरिष्ठ मालवी कवि नरहरि पटेल ने नसीहत देता गीत सुनाकर की- नकली कागज़ क ा फूलड़ा मत वेच मलिड़ा/ म्हारों देव नी है झूठो/ तूज अकेलो नीज है भोला/ फूल भरया बाजार में/ स्वार्थ के आगे माथो मत टेक रे/ गंगा छोड़ी पोखर नहायो/ जनम कमायो गांठ गमायो/ हाथ कारो लेख लिखी ने लेख/ मत कागज का फू लड़ा वेच रे.
वेद हिमांशु ने राष्ट्रीय एकता में सेंध मारने वाले जयचंदो पर अपनी लघु कविता में कुछ इस तरह प्रहार किया जो बेहद सराहा गया – भई रे मनक मनक के/ खड़ा होण में मति बाँटो/ अरे बाँटी सको तो आपस में प्रेम बाँटो/ काय को झगड़ो ने काय को झाँटो/ क्यऊँ देश को पियो पाणी/ ने खई रिया रोटी ने आटो / निगुड़ा वणी ने उका माथा पे/ मत मारो भाटो।
मुकेश इन्दौरी ने बसंत के रंग में रंगी मालवी $गज़ल सुनाकर दाद बटोरी – फूलां पे वे निखार तो हमझो बसंत है/सगला आड़ी छई वे बहार तो हमझो बसंत है/ बाग बगीचा सगला आड़ी लहलहावे खेत/पीरा पीरा सरसूँ के फूला की वे भरमार तो हमझो बसंत है/ फूलां ती छेड़ छाड़ करे जदे तितलियाँ/ उमड़े खूब प्यार ही प्यार तो हमझो बसंत है/ मस्ती में झुमती तेकी नगे आवे डगारा झाड़का पर / दिल वईजा खुश मौसम वे खुशगंवार तो हमझो बसंत है / नगे आवे कोनी कणीकी आँखा में आँसू / छई वे खुशिया अपरमपार तो हमझो बसंत है / हर कणे नसो चढय़ो वे बसंत को /आँखा पे छावे खुमार तो हमझो बसंत है ।
मालवी रचनाओं का पाठ कियाकुसुम मंडलोई ने बसंत के रंग में रंगा हुआ मालवी लोकगीत सुनाकर दाद बटोरी – कली पे भंवरो मंडरायो / देखी ने उनकी प्रीत उनकी याद म्हारे सांवरो आयो / कोयल कूके बाग में आम्बा बोले मारे सायंबा बोले / मन पंछीड़ो रूदन करे कब आवे चितचोर कमल सो मुखड़ो कुम्हलायो / याद म्हारे सांवरियो आयो।
हरेरामवाजपेई ने गीत -कविता की एक क्यारी को मूँ तो एक माली हूँ सर्वश्री नंदकिशोर चौहान, श्याम बाघोरा , ओम उपाध्याय, मदनलाल अग्रवाल , नयनराठी , भीमसिंह पंवार , अरविंद ओझा आदि ने भी मालवी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर देवास के वरिष्ठ मालवी कवि स्व. मदन मोहन व्सास एवं समिति के सदस्य स्व. वेकटरमन स्वामी को श्रद्धांजलि भी दी गई.